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ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो

Ek Geet Sau Afsane

Episode   ·  64 Plays

Episode  ·  64 Plays  ·  14:05  ·  Apr 2, 2024

About

परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी है साल 1915 में रेकॉर्ड की हुई ग़ज़ल "ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो, मुबारक हो"। जानकी बाई की आवाज़। उन्हीं का यह कलाम है और उन्हीं की मौसिक़ी। इस मुबारकबादी मुजरे के बहाने जाने ग्रामोफ़ोन रेकॉर्डिंग के शुरुआती मशहूर कलाकारों में एक, जानकी बाई के जीवन की कहानी। इस ग़ज़ल की रेकॉर्डिंग से चार वर्ष पहले ब्रिटिश शासन के किस महत्वपूर्ण समारोह के परिप्रेक्ष्य में इसकी रचना करवाई गई थी? उस सजीव प्रस्तुति में जानकी बाई के साथ किस मशहूर गायिका ने इस ग़ज़ल में आवाज़ मिलायी थी? क्यों जानकी बाई को "छप्पन-छुरी" वाली कहा जाता है? इस रेकॉर्ड के तीस साल बाद, किस फ़िल्मी गीत में इस ग़ज़ल के मतले की पहली लाइन का प्रयोग गीतकार अहसान रिज़्वी ने किया? ये सब आज के इस अंक में।

14m 5s  ·  Apr 2, 2024

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